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सरदार हरि सिंह नलवा

In Punjabi- ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ



भारत के इतिहास में उत्तरी सीमा के निर्धारण तथा इसकी सुरक्षा में जो स्थान जनरल जोरावर सिंह (1786-1841 ई.) का है, वही स्थान भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा पर सरदार हरि सिंह नलवा का है। सौभाग्य से ये दोनों समकालीन थे तथा दोनों का बलिदान भारतीय इतिहास की बेजोड़ मिसाल है।
हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 ई. में अविभाजित पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था। बचपन में उन्हें घर के लोग प्यार से "हरिया" कहते थे। सात वर्ष की आयु में इनके पिता का देहांत हो गया। 1805 ई. के वसंतोत्सव पर एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने आयोजित किया था, हरिसिंह नलवा ने भाला चलाने, तीर चलाने तथा अन्य प्रतियोगिताओं में अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया। इससे प्रभावित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया। शीघ्र ही वे महाराजा रणजीत सिंह के विश्वासपात्र सेना नायकों में से एक बन गये। एक बार शिकार के समय महाराजा रणजीत सिंह पर अचानक एक शेर के आक्रमण कर दिया, तब हरि सिंह ने उनकी रक्षा की थी। 


इस पर महाराजा रणजीत सिंह के मुख से अचानक निकला "अरे तुम तो राजा नल जैसे वीर हो।" तभी से नल से हुए "नलवा" के नाम से वे प्रसिद्ध हो गये। बाद में इन्हें "सरदार" की उपाधि प्रदान की गई।
हरिसिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के विजय अभियान तथा सीमा विस्तार के प्रमुख नायकों में से एक थे। अहमदशाह अब्दाली के पश्चात् तैमूरलंग के काल में अफगानिस्तान विस्तृत तथा अखंडित था। इसमें कश्मीर, लाहौर, पेशावर, कंधार तथा मुल्तान भी थे। हेरात, कलात, बलूचिस्तान, फारस आदि पर उसका प्रभुत्व था। हरि सिंह नलवा ने इनमें से अनेक प्रदेशों को महाराजा रणजीत सिंह की विजय अभियान में शामिल कर दिया। उन्होंने 1813 ई. में अटक, 1818 ई. में मुल्तान, 1819 ई.में कश्मीर तथा 1823 ई. में पेशावर की जीत में विशेष योगदान दिया। अत: 1824 ई. तक कश्मीर, मुल्तान और पेशावर पर महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य हो गया। मुल्तान विजय में हरिसिंह नलवा की प्रमुख भूमिका रही । महाराजा रणजीत सिंह के आह्वान पर वे आत्मबलिदानी दस्ते में सबसे आगे रहे। इस संघर्ष में उनके कई साथी घायल हुए, परंतु मुल्तान का दुर्ग महाराजा रणजीत सिंह के हाथों में आ गया।
महाराजा रणजीत सिंह को पेशावर जीतने के लिए कई प्रयत्न करने पड़े। पेशावर पर अफगानिस्तान के शासक के भाई सुल्तान मोहम्मद का राज्य था। यहां युद्ध में हरि सिंह नलवा ने सेना का नेतृत्व किया। हरि सिंह नलवा से यहां का शासक इतना भयभीत हुआ कि वह पेशावर छोड़कर भाग गया। अगले दस वर्षों तक हरिसिंह के नेतृत्व में पेशावर पर महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य बना रहा, पर यदा- कदा टकराव भी होते रहे। इस पर पूर्णत: विजय 6 मई, 1834 को स्थापित हुई।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार हरि सिंह नलवा ने पेशावर में वर्षा होने पर अपने किले से देखा कि अनेक अफगान अपने-अपने मकानों की छतों को ठोक तथा पीट रहे हैं, क्योंकि छतों की मिट्टी बह गई थी। पीटने से छतें, जो कुछ बह गई थीं, पुन: ठीक हो गर्इं थीं। इसे देखकर हरि सिंह नलवा के मन में विचार आया कि अफगान की मिट्टी ही ऐसी है जो ठोकने तथा पीटने से ठीक रहती है। अत: हरि सिंह ने वहां के लड़ाकू तथा झगड़ालू अफगान कबीलों पर पूरी दृढ़ता तथा शक्ति से अपना नियंत्रण किया तथा राज्य स्थापित किया।
हरि सिंह ने अफगानिस्तान से रक्षा के लिए जमरूद में एक मजबूत किले का भी निर्माण कराया। यह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए मौत का कुआं साबित हुआ। अफगानों ने पेशावर पर अपना अधिकार करने के लिए बार-बार आक्रमण किये। काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद के बेटे ने भी एक बार प्रयत्न किया। 30 अप्रैल 1837 ई. को जमरूद में भयंकर लड़ाई हुई। बीमारी की अवस्था में भी हरि सिंह ने इसमें भाग लिया तथा अफगानों की 14 तोपें छीन लीं। परंतु दो गोलियां हरि सिंह को लगीं तथा वे वीर गति को प्राप्त हुए। फिर भी इस संघर्ष में पेशावर पर अफगानों का अधिकार न हो सका।
हरि सिंह नलवा देश के लिए शहीद हो गये, परंतु उनका भय उनके मरने के पश्चात भी अफगानों पर छाया रहा। उनका नाम अफगानों के लिए मौत का साया बन गया था। उनकी वीरता तथा शौर्य की घटनाएं घर-घर की कहानियां बन गई थी। अनेक अफगान माताएं अपने बच्चों को उनके नाम का भय दिखलाकर सुलाने लगीं। कहतीं "सो जा नहीं तो नलवा आ जाएगा।" अनेक मुल्ला तथा मौलवी उसके नाम की दहशत से अनेक बार नमाज अता करना तथा जिहाद का जुनून भूल जाते। उनका नाम सुनते ही अनेक मुस्लिम सेनापतियों का पसीना छूट जाता तथा तलवार पर पकड़ ढीली हो जाती थी। अनेक विद्वानों ने हरि सिंह नलवा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। एक इतिहासकार ने उन्हें "अति तीव्रता से शत्रु दल पर टूट पड़ने वाला सेनापति" कहा है। धन्य है वीर हरि सिंह नलवा का बलिदान तथा देश की सीमाओं का निर्धारण करने में उनका योगदान।


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